सेल्फी : मनोरंजन या मनोरोग ?

डॉ. संजय श्रीवास्तव

क्या आप सभी जानते है की एक ख़ास सर्वेक्षण के अनुसार अवसाद के बाद दुस्साहसिक सेल्फी लेना युवाओं में होने वाली मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण निकल कर सामने आया है |

यूँ तो आप सभी जानते ही हैं की तस्वीरें खिचवाने का या अपनी तस्वीरे बनवाने का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है उसके पीछे का मनोविज्ञान यही है की हर व्यक्ति खूबसूरत दिखना चाहता है और वह अपनी खूबसूरत तस्वीर को देख कर गौरान्वित अनुभव करता है ,प्रसन्न होता है वक़्त बदलता गया |

पहले जहाँ एक फोटो लेने में बहुत समय लगता था आज तकनीकी युग में यही काम कुछ सेकेंड्स में हो जाता है |पहले जहाँ किसी की फोटो कोई और व्यक्ति लेता था ,अब व्यक्ति स्वयं की फोटो ले लेता है और हम ,आप इसे सेल्फी के नाम से जानते हैं | आज कल आप जहाँ देखिये वहां सेल्फी का बोलबाला है वो चाहे कोई पार्टी हो ,स्कूल ,कालेज ,पार्क , पिकनिक स्पॉट या फिर रेलवे स्टेशन ,रोड या यूँ कहे की इस सेल्फी वर्ड ने पूरे विश्व को आच्छादित कर रखा है | क्या आप जानते है ज्यादातर लोगों के सेल्फी लेने के पीछे क्या मनोविज्ञान होता है ?

आइये हम सेल्फी लेने के पीछे क्या मनोविज्ञान छिपा होता है उसके कुछ  खास पहलुओं पर चर्चा करते हैं :

  1. जब कभी भी कोई व्यक्ति सेल्फी ले कर उसे देखता है तो ये सेल्फी उसमे आत्मविश्वास पैदा करती है |
  2. सेल्फी लेने वाले व्यक्ति में स्वाभिमान की बढोतरी होती है |
  3. लोग उसे बहुत पसंद करते हैं |
  4. ऐसे लोगों में अपने को हर समय खूबसूरत दिखने की चाह होती है |
  5. कई बार सेल्फी लेने वाले व्यक्ति बहुत दुस्साहसिक काम कर जाते है और वे सेल्फी के माध्यम से दूसरों पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करते रहते है  और इसी वजह से ऐसे लोग अक्सर किसी दुर्घटना का शिकार हो कर या तो मौत के मुह में चले जाते हैं या पूरी जिंदगी अपाहिज बन कर रहते हैं |

क्या आप सभी जानते है की एक ख़ास सर्वेक्षण के अनुसार अवसाद के बाद दुस्साहसिक सेल्फी लेना युवाओं में होने वाली मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण निकल कर सामने आया है |

ये वे कुछ खास पहलू हैं जिसकी वजह से आज सेल्फी का क्रेज खासकर युवाओं में बहुत ज्यादा देखा जा सकता है |

एक खास सर्वे के अनुसार अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार बार बार सेल्फी लेने को एक मनोरोग का नाम दिया गया है | जिसे SELFITIS के नाम से जाना जाता है |

अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार  वे लोग इस रोग के दायरे में आते है जो बार बार अपनी सेल्फी ले कर सोशल मीडिया जैसे इन्स्टाग्राम , फेसबुक , व्हाट्स एप्प ,ट्विटर पर पोस्ट करते रहते हैं |

एसोसिएशन के अनुसार इस रोग की तीन स्टेज होती हैं :

BORDERLINE : ऐसे लोग जो दिन में तीन बार अपनी सेल्फी लेते है लेकिन वे किसी भी सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करते हैं |

ACUTE: ऐसे लोग जो दिन में कम से कम तीन बार अपनी सेल्फी लेते हैं और वे इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी करते हैं |

CHRONIC : ऐसे लोगो में हर समय सेल्फी लेने की अनियंत्रित तीव्र इच्छा होती रहती है और ऐसे लोग सेल्फी लेने के लिए हर समय तत्पर रहते हैं और एक सबसे ख़ास बात ऐसे लोगों में सेल्फी लेते वक्त इस बात का बिलकुल भी ध्यान नहीं रहता है की वे किस परिस्थियों में सेल्फी ले रहे हैं या इसका क्या दुस्परिणाम हो सकता है |

SELFITIS से मन पर होने वाले दुष्प्रभाव : दोस्तों एक नियम है की जब कोई भी चीज़ जरुरत से ज्यादा हो जाती है तो वह उबाऊ हो जाती है यही नियम यहाँ पर भी लागू होता है | कई बार ऐसे लोग जो बार बार अपनी सेल्फी को सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं तो शुरू शुरू में तो उनके दोस्त ,यार उन्हें प्रभावित करने के लिए तो उस पोस्ट को खूब लाइक करते हैं और अच्छे अच्छे कमेंट्स भी लिखते हैं लेकिन धीरे धीरे जब वे उस व्यक्ति की पोस्ट को कम लाइक मिलते हैं या उसके बारे में कम कमेंट्स लिखे जाते है तो ऐसे व्यक्तियों के मन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वह धीरे धीरे INFERIORITY COMPLEX या अह्सासे कमतरी का शिकार हो जाता है और उसका सारा जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है|

बचाव : इस से बचने का बहुत आसान तरीका है की आपके जीवन और भी बहुत सारी चीज़े देखने और पढने के लिए है उन्हें प्रोत्साहित करे और अपनी कोई भी सेल्फी को तुरंत पोस्ट करने से पहले कुछ दिन या कुछ देर के लिए अपने फोन में रखे और फिर पोस्ट करें इससे आपके अन्दर सेल्फी लेने की तीव्र इच्छा में धीरे धीरे कमी आती जाएगी और एक जरुरी बात अपने रूप के साथ साथ अपने सारे गुणों को निखारे क्योकि गुण ही आपका भविष्य तय करते हैं |

डॉ० संजय श्रीवास्तव अब स्मृति शेष हैं। प्रस्तुत लेख उन्होंने अपने जीवन काल में लिखा था। आई. सी. एन. द्वारा इस लेख के पुन: प्रकाशन का उद्देश्य समाज को इसकी उपयोगिता से पुन: परिचित कराना एवं अपने विद्धान लेखक को श्रृद्धांजलि अर्पित करना हैडॉ. संजय श्रीवास्तव आई सी एन ग्रुप के एसोसिएट एडिटर, साइकोलोजिकल काउन्सलर एवं क्लीनिकल हिप्नोथेरेपिस्ट थे.

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